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Tuesday, December 22, 2009

फिर देखेंगे हम लोग

हांजी बिलकुल सही पढ़ा आपने, बहुत जल्दी ही हम सब फिर से देखेंगे हम लोग...
आज की पीढ़ी को तो शायद पता ही नहीं होगा की ये हम लोग है किस बला का नाम लेकिन हम जैसे कुछ लोग जिन्हें घर में ठोडा सा साहित्यिक माहौल मिला है उनके मन में जरुर है "हम लोग" की यादें और  NDTV इंडिया के हम लोग में हम लोग के पात्र देख कर तो हम लोगों में हम लोग की यादें ताज़ा हो ही गयी है. दूरदर्शन जल्दी ही लाने वाला है हम लोग .
अब देखने वाली वैसे अभी बोले तो सोचने वाली बात ये होगी की बिना दादामुनि और मनोहर श्याम जोशी के हम लोगों को क्या "हम लोग" पसंद आएगा. वैसे अगर पुराने दर्शकों की बात करे तो मुझे लगता है वो लोग "छंद पाकैया..." की कमी जरुर महसूस करेंगे.
१९८४ में तो दर्शक हम लोग के चरित्रों को खुद से जुड़ा हुआ मानते थे अब पता नहीं आज की पीढ़ी खुद को जुड़ा हुआ पाएगी हम लोग से?  मुझे ऐसा लगता है की दूरदर्शन जो की आज भी देखा जाता है क्योंकि अभी DTH का उतना प्रचार प्रसार नहीं हुआ है गाँव में, को थोड़ी अपनी मार्केटिंग पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि जो दर्शक उनसे अलग हो गए है वो वापस आ सके. पहले दूरदर्शन को अपनी साख को वापस लाना चाहिए क्योंकि लोगों के मन में ये बात गहराई तक बैठ चुकी है की दूरदर्शन के दूर से ही दर्शन करो.
आप खुद ही सोचिये की अगर लापता गंज दूरदर्शन पर आ रहा होता तो वो कितने दर्शकों तक पहुँच पाता और कितने दर्शक बोलते "पापा कसम बहुत अच्छा प्रोग्राम है..." या "कभी कभी कुछ अच्छे प्रोग्राम्स भी बन जाते है ".
Friday, December 11, 2009

चाची की चप्पल

आजकल शादियों का सीजन चल रहा है तो हमे भी कुछ शादियों में सम्मिलित होने का मौका मिल रहा है. अब यदि शादी है तो शादी में अलग अलग बातों पर विचार विमर्श भी चलता रहता है जैसे इस लड़की के लिए वो लड़का अच्छा है या उस लड़की के लिए ये लड़का. वैसे कभी कभी कुछ इंटरेस्टिंग किस्से भी निकल कर आ जाते है, आज ही की बात लीजिये मैं एक शादी में बिना काम के व्यस्त हो रहा था तभी चारो ओर से अचानक शोर सुनाई देने लगा और सब लोग (कम से कम मेरे आस पास थे वो लोग तो) एक ही बात कर रहे थे की "चाची की चप्पल" हांजी चाची की चप्पल कहा गयी?
उस समय तो ऐसा लग रहा था जैसे सारा संसार केवल एक ही बात को लेकर चिंतित था की आखिर चाची की चप्पल गयी कहा? कुछ मुद्दे जिन्हें हम अति संवेदनशील समझते है जैसे ग्लोबल वार्मिंग या ग्लोबल आतंकवाद तो चाची की चप्पल के सामने अतिसूक्ष्म नज़र आ रहे थे.
कुछ लोग इस बात को लेकर चर्चा कर रहे थे की कही किसी ने चप्पल चुरा तो नहीं ली, कुछ लोग इस चर्चा में व्यस्त थे ही कही कोई ओर तो नहीं पहन कर तो नहीं चला गया और कुछ लोग तो ये भी बोल रहे थे की कही चाची ही अपनी चप्पल कही भूल तो नहीं आई. इन शोर्ट बोला जाए तो चारो तरफ सिर्फ चाची की चप्पल ही नज़र आ रही थी मतलब नज़र न आते हुए भी नज़र आ रही थी.
मैं तो अपने आलस्य के चलते शादी वाले घर से भाग कर अपने घर आ गया चाची की चप्पल जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को बीच में ही छोड़ कर, यहाँ अपने घर आ कर मुझे बहुत अपराधबोध हो रहा है की चाची की चप्पल को कितना बुरा लग रहा होगा अभी की मैं उसको ढूंढे बगैर ही वापस आ गया.
Tuesday, October 27, 2009

लापता गंज का पता

हाँजी तो मिल ही गया "लापता गंज" का पता...
शरद जोशी के बारे में आज की पीढी शायद उतना नही जानती हो पर हम जानते है और ये बात हम गर्व से कह सकते है । शरद जोशी जी से हमारी मुलाकात हमारी बाल भरती ने करवाई थी । आज भी हमे याद है "जीप पर सवार तीन इल्लियाँ " जिसने हमारे मन में एक बात बैठाई थी की कैसे सरकारी पदका दुरूपयोग किया जाता है जो की शायद बाद में इस बात में तब्दील होता गया की कैसे दुरूपयोग किया जा सकता है :)
हम इस बात को लेकर शरद जोशी के शुक्रगुजार है कि उन्होंने हमे एक सच्चाई से बड़े ही सही तरीके अवगत करवाया। शरद जोशी जी व्यंग्य में एक बात जो हमे बहुत पसंद है वो ये है कि अपनी बात को कितने सरल तरीके से कहा जा सकता है ।
लापता गंज कि अभी तो शुरुआत है , देखे आगे आगे क्या होता है? अभी तो देख कर ऐसा लगा है कि हमे कुछ अच्छे और कुछ लाउड लोगो को देखने को मिलेगा , अब निर्देशक महोदय इन सबको साथ ले कर शरद जोशी कि रचनाओ के साथ कितना न्याय कर पाते है ये तो कुछ समय बाद ही पता लगेगा ।
वैसे एक अच्छी बात है इस "लापता गंज " में कि इसका पता नेहा जोशी को है इसलिए शायद हमको इस धारावाहिक को काफी दिनों तक देखने को मिलेगा और घर कि बात घर में ही रहेगी।
Friday, June 26, 2009

मेरे शहर में मानसून

तो आखिरकार मेरे शहर में मानसून ने दस्तक दे ही दी ... यह एक बहुत सुकून देने वाला अहसास है । अभी जब में ये बात आप लोगो से कह रहा हूँ तब भी बाहर बरसात हो रही है और मैं बुद्धू बक्से में रामायण का अन्तिम एपिसोड देख रहा हूँ । दिन भर की थकान के बाद अब मुझे उबासी भी आ रही है साथ ही ठंडी ठंडी हवा मेरे आलस को और बड़ा रही है लेकिन मैं अभी सोना नहीं चाहता हूँ । पता नहीं क्यों लेकिन अभी नहीं...
आज शाम को मैं काम से बाज़ार गया था तब मुझे लगा की क्या कारण है की मैं इस शहर को नहीं छोड़ना चाहता हूँ , ठंडी ठंडी हवा चल रही थी , आसमान में ना अँधेरा था न उजाला एक अलग ही रंग में रंगा हुआ था आसमान मानो आज एक नए रंग की रचना करना चाहता हो जैसे और भोपाल में अब भी कुछ हरियाली आधुनिकता की बलि नहीं चढ़ पायी है तो वो भी अपना योगदान देना एक कर्तव्य के रूप में ले रही थी।
कुल मिला कर एक बहुत अच्छे मौसम की बात मैं यहाँ करना चाहता हूँ जिसका आज मैं साक्षी बना हूँ । अब मैं यही उम्मीद कर सकता हूँ एक भोपाली होते हुए कि जल्द से जल्द इस शहर की शान हमारी बड़ी झील फिर से अपने पुराने स्वरुप में लौट आए और किसी दिन तेज़ बरसात में मैं बड़ी झील के किनारे बैठ कर बरसात होते हुए देख सकूँ।
Thursday, June 18, 2009

रामायण - एक भव्य गाथा का समापन

हाँ भइया ख़बर ये है की एक और अच्छे धारावाहिक का समापन होने जा रहा है। भाई रामायण का आखरी एपिसोड जल्द ही प्रसारित होने वाला है। रामायण एक ऐसी महागाथा है जो आपको बहुत कुछ सिखाती है। आप इस महागाथा के हर सन्दर्भ से कुछ न कुछ सिख सकते है , लेकिन अब और नही अब तो भइया राखी सावंत का स्वयंवर होने वाला है और हमे उसे दिखाया जाएगा। देखना न देखना तो हमारे ऊपर ही है लेकिन...
मुझे ये समझ नही आता है की आज भी लोग कुछ अच्छा देखना चाहते है तो क्यों ये चैनल वाले कुछ अच्छा दिखाने से परहेज करते है? कोई कुछ भी बोले मैं तो ये नही मान सकता की ये स्वयंवर एक अच्छा आईडिया है, अगर आपको कुछ अलग और अच्छा करना ही था तो आप भी स्टार प्लस के जैसे कोई मेट्रीमोनी कार्यक्रम दिखा सकते थे।
एक महागाथा का रिप्लेसमेंट कुछ तो स्तरवाला होना चाहिए था। अब भले ही मैं बिना देखे अपनी प्रतिक्रिया दे कर ग़लत कर रहा होऊंगा लेकिन मैं यह नही मान सकता की एक एक अच्छी पहल है। काश की हमे इस बात की आज़ादी होती की हम सीधे इस तरह के सो कॉल्ड रियलिटी शो का खुले आम विरोध कर चैनल वालो को कुछ तो अच्छा दिखाने पर मजबूर कर देते।
Monday, June 15, 2009

ये जो है ज़िन्दगी या ये घर की बात है...

हाँ जी तो बताइए की ये जो है ज़िन्दगी या ये घर की बात है? सन् १९८४ में स्वर्गीय श्री शरद जोशी द्वारा लिखित और एस एस ओबेराई एवं रमन कुमार (तारा फेम) द्वारा निर्देशित "ये जो है ज़िन्दगी" को भूल पाना थोड़ा मुश्किल काम है और हम जैसे लोग तो शायद भूलना भी नही चाहेगे हलाँकि अगर मैं अपनी बात करू तो मुझे इस धारावाहिक की बहुत धुंधली यादें है लेकिन वो यादें भी इस धारावाहिक को ना भूलने के लिए काफ़ी है।
रणजीत वर्मा (स्वर्गीय श्री शफी इनामदार)उनकी पत्नी रेणू वर्मा (स्वरुप संपत) उनका साला राजा(राकेश बेदी) उनका बॉस (टिकू तलसानिया ) और उनके बंगाली पड़ोसियों (विजय कश्यप और सुलभा आर्य ) के चारो ओर घुमती ज़िन्दगी और इन जिंदगियों को एक सूत्र में पिरोते सतीश शाह , कौन भूल सकता है इन चरित्रों को? हर कलाकार एक से बड़कर एक और ऊपर से शरद जोशी के व्यंग्य ,आख़िर क्यों भूले हम इस धारावाहिक को?
ये वही धारावाहिक है जिसने टिकू तलसानिया को "ये क्या हो रहा है ?" और सतीश शाह ने "व्हाट ऐ रिलीफ" और "तीस साल का एक्सपेरिएंस है" जैसे डाय्लोग दिए। शायद आपको जान कर आश्चर्य हो की सारे धारावाहिक में एक कैमरा सेट अप किया गया था और इस धारावाहिक के कोई पायलट एपिसोड नही थे।
अब बात करे "घर की बात है " की,वैसा ही परिवार जिसमे एक पति राजदीप याग्निक (सुमीत राघवन),एक पत्नी राधिका याग्निक (जूही बब्बर ) उनका साला काकू उर्फ़ कपिल कुमार (स्वप्निल जोशी ) और पड़ोसी मिस्टर एंड मिसेस वालिया (जयति भाटिया और देवेन मुंजाल) है और इस बार इन्हे एक सूत्र में पिरोने का काम कर रहे है अली असगर। वैसे हमे इन कलाकारों की योग्यता पर कोई शक नही है पर फिर भी इस घर की बात में वो बात नही नज़र नही आती है जो कि उस ज़िन्दगी में थी। आज के दौर में आधुनिकता तो है पर वो सादगी वो बंधन नज़र नही आता है। खैर अब तो घर कि बात भी पुरानी हो चली है, पता नही क्यों लेकिन चैनल वालों को अच्छे धारावाहिक अच्छे नही लगते है तभी तो घर कि बात है का भी हश्र भी साराभाई वर्सेस साराभाई और जस्सुबेन जयंतीलाल जोशी कि जोइंट फॅमिली जैसा ही हुआ।
Sunday, June 14, 2009

ताना ना ना ताना ना ना ना...

कभी-कभी हमे अपने मस्तिष्क की गति पर आश्चर्य करना पड़ता है, आज ही की बात ले लीजिये, आज मैं एक हिन्दी मूवी देख रहा था और उस मूवी में रत्नागिरी नाम के एक स्थान का सन्दर्भ आया तो मेरे जेहन में अचानक "अमरावती की कथायें " नाम के धारावाहिक की यादें ताज़ा हो गई। श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित यह धारावाहिक साहित्य अकादमी अवार्ड जीती हुई कहानियों पर आधारित थाअब अगर उस दौर के धारावाहिकों की बात चल रही है तो भला "मालगुडी डेस" का जिक्र न हो तो कुछ अधुरा तो लगेगा ही, आपको शायद न लगे लेकिन मुझे जरुर लगेगा। मालगुडी डेस , स्वर्गीय श्री शंकर नाग द्वारा निर्देशित यह धारावाहिक कर्नाटक के शिमोगा जिले के अगुम्बे में फिल्माया गया था। एल विद्यानाथन द्वारा संगीतबद्ध इस धारावाहिक का टाइटल गीत आज भी उतनी ही सुखद अनुभूति देता है जितनी की उस समय देता था।
मुझे आज भी याद है मैं पुणे में एक इंटर-वियु देने गया था तब अचानक मैंने किसी के रिंग टोन के रूप में मालगुडी डेस का गाना सुना था तो मेरा ध्यान पुरे समय इस बात पर ही लगा रहा की कैसे मैं उससे यह रिंग टोन मांगू।
मिठाई वाला हो या स्वामी हो हम आज भी उन चरित्रों को अपना सा मानते है और कही ना कही अपनी ज़िन्दगी में खोजने की एक असफल सी कोशिश करते है , ये जानते हुए कि हम शायद स्वामी की उस सच्चाई को छू भी ना पाये। सुनने में आया है की शायद दूरदर्शन इस धारावाहिक को फिर से फिल्माना चाहता है। वैसे तो परिवर्तन ही इस दुनिया की एकमात्र स्थिर चीज़ है लेकिन कुछ बातें अपरिवर्तनीय ही अच्छी लगती है और एल दर्शक के नज़रिए से मुझे भी शायद ये परिवर्तन रास न आए क्योंकि कुछ पुराने धारावाहिकों का नया स्वरुप उतना प्रभावशाली नही रहा है। खैर देखते है क्या होता है, तब तक गुनगुनाते रहिये ताना ना ताना ना ना ना...
Saturday, June 13, 2009

जैसा की सोचा था...

कल रात का जागरण आख़िरकार बेकार गया :( और भारत हमेशा की तरह "करो या मरो" में पड़ने की अपनी आदत पर लौट आया है। अब तक तो कप्तान साब की चतुराई की हर तरफ़ तारीफ़ हो रही थी और इसमे कोई दो-राय भी नही है की हमारे कप्तान साब एक अच्छे खिलाड़ी है लेकिन मुझे ऐसा लगता है अपने सीनियर खिलाड़ियों का सम्मान न करके उन्होंने ग़लत ही किया है। आप अगर टीम के कप्तान हो तो आपको सब लोगों को साथ में रख कर चलना आना चाहिए न की किसी के अनुभव को नज़र अंदाज़ करके टीम में सिर्फ़ अपने वर्चस्व को साबित करना।
कोई कुछ भी बोले हम तो मानते है की हमारे कप्तान साब ने कुछ फैसले ग़लत ही लिए है , अब भइया सचिन तेंदुलकर ने अपने सम्मान की रक्षा करने के लिए ही टी २० से अपना नाम वापस लिया है नही तो उनका हश्र भी बाकी सिनिअर्स जैसा हो जाता क्योंकि हमारे सिनिअर्स में कितना दम है ये तो वो लोग आई पी एल में साबित कर ही चुके है।
कप्तान साब अभी तक तो आपकी किस्मत ने आपका साथ दिया है लेकिन हर बार नही और जो नीचे होता है वो ऊपर जरुर आता है इसलिए जो ऊपर है उसे नीचे आना ही पड़ेगा। सफलता हर समय आपके साथ नही रहेगी , इस बात को हमेशा ध्यान में रख कर अपने आधार को कभी भूलना नही चाहिए।
Friday, June 12, 2009

सुपर ८ में भारत

हाँ तो भइया रात के पौने बारह बज रहे है और हम एक सच्चे देशभक्त की तरह भारत-वेस्ट इंडीज का टी २० मुकाबला देख रहे है। वैसे युसूफ पठान की पारी ने कुछ हद तक भारत को मुकाबले में ला दिया है नही तो हमारे खिलाड़ियों ने क्रिस गेल को एक आसन सा लक्ष्य देने का मन बना लिया था , लेकिन देखिये युसूफ पठान में तो जैसे बिल्कुल टीम भावना नही है तभी तो शायद उन्होंने कहा की नही अगर वेस्ट इंडीज को ये मैच जितना है तो उनको थोडी मेहनत करनी ही पड़ेगी।
अरे ये क्या ? अब तो इरफान पठान भी अपने भाई का साथ देने लगे और टीम से बगावत करने हुए अपने पहले ही ओवर में फ्लेचर को आउट कर दिया... अब शायद कप्तान साब उन्हें इस मैच में दुबारा बोलिंग का मौका नही देगे।
चलिए देखते है अब क्या होता है...

मेरी स्थगित यात्रा

पिछले कुछ महीनों से मुझे कुछ बदलाव चाहिए था तो सोचा की शिर्डी हो आऊं, बाबा के दर्शन भी हो जायेंगे और एक ढर्रे पर चल रही ज़िन्दगी को थोड़ा सा बदलाव भी मिल जाएगा, लेकिन वो कहते है ना की जब तक बाबा न बुलाए आप उनसे मिलने नहीं जा सकते हो, ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ, शायद अभी मेरा बाबा से साक्षात्कार का समय नहीं आया था और इसलिए उन्होंने मुझे अभी मिलने नहीं बुलाया।
पुराने ज़माने में जैसे लोग कठीन यात्रा कर देव दर्शन को जाते थे आजकल ऐसा नहीं होता है और शायद एक आम आदमी की तरह मैं भी थोड़ा सा स्वार्थी हो गया था और मैंने तय किया था कि अगर हमारी भारतीय रेल मुझे एक आरामदायक यात्रा का सुख देगी तो ही मैं इस यात्रा पर जाऊँगा अन्यथा बाकी लोगों की तरह बाबा के अभी ना बुलाने का बहाना कर दूंगा।
खैर अब एक पुख्ता इंतजाम के साथ अपनी अगली यात्रा का कार्यक्रम बनाऊंगा ताकि बाबा के नाम से कोई बहाना ना बनाना पड़े और मुझे भी थोड़ा सा सुकून मिल जाए अपनी रूटीन ज़िन्दगी से...
Wednesday, June 10, 2009

माफ़ कीजियेगा...

वैसे तो शायद ही कोई मेरे ब्लॉग को देखता होगा फिर भी मैं माफ़ी चाहता हूँ कि कुछ तकनिकी कारणों के चलते मुझे अपने ब्लॉग के सारे पोस्ट डिलीट करने पड़े। हालाँकि इससे किसी को कोई फर्क नही पड़ेगा लेकिन मैं तो संतुष्ट हो जाऊँगा कि मैं माफ़ी मांग ली और इससे ये भी लगेगा कि कोई ना कोई तो मेरा ब्लॉग पड़ता ही होगा, अब भले ही "दिल को बहलाने के लिए ये ख्याल अच्छा है ग़ालिब..." वैसे मुझे अपनी कुछ पोस्ट कि कमी जरुर खलेगी लेकिन कभी-कभी कुछ बातों पर आपका बस नही चल पाता है क्या करे...

About Me

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Aditya Dubay
हर जगह ये पूछा जाता है कि अपने बारे मे बताइए (About me), हम ये सोचते है की जो हमें जानते है उन्हें अपने बारे मे बताना ग़लत होगा क्योंकि वो हमें जानते है और जो हमें नही जानते उन्हे हम बता कर क्या करेंगे की हम कौन है | जो हमें नही जानता क्या वो वाकई हमें जानना चाहता है और अगर जानना चाहता है तो उसे About me से हम क्या बताये क्योंकि हम समझते है बातचीत और मिलते रहने से आप एक दूसरे को बेहतर समझ सकते हो About Me से नही | वैसे एक बात और है हम अपने बारे मे बता भी नही सकते है क्योंकि हमें खुद नही पता की हम क्या है ? हम आज भी अपने आप की तलाश कर रहे है और आज तक ये नही जान पायें हैं की हम क्या है? अब तक का जीवन तो ये जानने मे ही बीत गया है की हमारे आस पास कौन अपना है और कौन पराया ? ये जीवन एक प्रश्न सा ज़रूर लगता है और इस प्रश्न को सुलझाने मे हम कभी ये नही सोच पाते है की हम कौन है? कुछ बातें सीखने को भी मिली जैसे आपका वजूद आपके स्वभाव या चरित्र से नही बल्कि आपके पास कितने पैसे है उससे निर्धारित होता है | कुछ लोग मिले जो कहते थे की वो रिश्तों को ज़्यादा अहमियत देते है लेकिन अंतत: ... बहुत कुछ है मन मे लिखने के लिए लेकिन कुछ बातें या यू कहें कुछ यादें आ जाती है और मन खट्टा कर जाती है तो कुछ लिख नही पाते हैं |
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