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Friday, June 12, 2009
मेरी स्थगित यात्रा
पिछले कुछ महीनों से मुझे कुछ बदलाव चाहिए था तो सोचा की शिर्डी हो आऊं, बाबा के दर्शन भी हो जायेंगे और एक ढर्रे पर चल रही ज़िन्दगी को थोड़ा सा बदलाव भी मिल जाएगा, लेकिन वो कहते है ना की जब तक बाबा न बुलाए आप उनसे मिलने नहीं जा सकते हो, ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ, शायद अभी मेरा बाबा से साक्षात्कार का समय नहीं आया था और इसलिए उन्होंने मुझे अभी मिलने नहीं बुलाया।
पुराने ज़माने में जैसे लोग कठीन यात्रा कर देव दर्शन को जाते थे आजकल ऐसा नहीं होता है और शायद एक आम आदमी की तरह मैं भी थोड़ा सा स्वार्थी हो गया था और मैंने तय किया था कि अगर हमारी भारतीय रेल मुझे एक आरामदायक यात्रा का सुख देगी तो ही मैं इस यात्रा पर जाऊँगा अन्यथा बाकी लोगों की तरह बाबा के अभी ना बुलाने का बहाना कर दूंगा।
खैर अब एक पुख्ता इंतजाम के साथ अपनी अगली यात्रा का कार्यक्रम बनाऊंगा ताकि बाबा के नाम से कोई बहाना ना बनाना पड़े और मुझे भी थोड़ा सा सुकून मिल जाए अपनी रूटीन ज़िन्दगी से...
पुराने ज़माने में जैसे लोग कठीन यात्रा कर देव दर्शन को जाते थे आजकल ऐसा नहीं होता है और शायद एक आम आदमी की तरह मैं भी थोड़ा सा स्वार्थी हो गया था और मैंने तय किया था कि अगर हमारी भारतीय रेल मुझे एक आरामदायक यात्रा का सुख देगी तो ही मैं इस यात्रा पर जाऊँगा अन्यथा बाकी लोगों की तरह बाबा के अभी ना बुलाने का बहाना कर दूंगा।
खैर अब एक पुख्ता इंतजाम के साथ अपनी अगली यात्रा का कार्यक्रम बनाऊंगा ताकि बाबा के नाम से कोई बहाना ना बनाना पड़े और मुझे भी थोड़ा सा सुकून मिल जाए अपनी रूटीन ज़िन्दगी से...
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About Me
- Aditya Dubay
- हर जगह ये पूछा जाता है कि अपने बारे मे बताइए (About me), हम ये सोचते है की जो हमें जानते है उन्हें अपने बारे मे बताना ग़लत होगा क्योंकि वो हमें जानते है और जो हमें नही जानते उन्हे हम बता कर क्या करेंगे की हम कौन है | जो हमें नही जानता क्या वो वाकई हमें जानना चाहता है और अगर जानना चाहता है तो उसे About me से हम क्या बताये क्योंकि हम समझते है बातचीत और मिलते रहने से आप एक दूसरे को बेहतर समझ सकते हो About Me से नही | वैसे एक बात और है हम अपने बारे मे बता भी नही सकते है क्योंकि हमें खुद नही पता की हम क्या है ? हम आज भी अपने आप की तलाश कर रहे है और आज तक ये नही जान पायें हैं की हम क्या है? अब तक का जीवन तो ये जानने मे ही बीत गया है की हमारे आस पास कौन अपना है और कौन पराया ? ये जीवन एक प्रश्न सा ज़रूर लगता है और इस प्रश्न को सुलझाने मे हम कभी ये नही सोच पाते है की हम कौन है? कुछ बातें सीखने को भी मिली जैसे आपका वजूद आपके स्वभाव या चरित्र से नही बल्कि आपके पास कितने पैसे है उससे निर्धारित होता है | कुछ लोग मिले जो कहते थे की वो रिश्तों को ज़्यादा अहमियत देते है लेकिन अंतत: ... बहुत कुछ है मन मे लिखने के लिए लेकिन कुछ बातें या यू कहें कुछ यादें आ जाती है और मन खट्टा कर जाती है तो कुछ लिख नही पाते हैं |
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