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Sunday, June 14, 2009

ताना ना ना ताना ना ना ना...

कभी-कभी हमे अपने मस्तिष्क की गति पर आश्चर्य करना पड़ता है, आज ही की बात ले लीजिये, आज मैं एक हिन्दी मूवी देख रहा था और उस मूवी में रत्नागिरी नाम के एक स्थान का सन्दर्भ आया तो मेरे जेहन में अचानक "अमरावती की कथायें " नाम के धारावाहिक की यादें ताज़ा हो गई। श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित यह धारावाहिक साहित्य अकादमी अवार्ड जीती हुई कहानियों पर आधारित थाअब अगर उस दौर के धारावाहिकों की बात चल रही है तो भला "मालगुडी डेस" का जिक्र न हो तो कुछ अधुरा तो लगेगा ही, आपको शायद न लगे लेकिन मुझे जरुर लगेगा। मालगुडी डेस , स्वर्गीय श्री शंकर नाग द्वारा निर्देशित यह धारावाहिक कर्नाटक के शिमोगा जिले के अगुम्बे में फिल्माया गया था। एल विद्यानाथन द्वारा संगीतबद्ध इस धारावाहिक का टाइटल गीत आज भी उतनी ही सुखद अनुभूति देता है जितनी की उस समय देता था।
मुझे आज भी याद है मैं पुणे में एक इंटर-वियु देने गया था तब अचानक मैंने किसी के रिंग टोन के रूप में मालगुडी डेस का गाना सुना था तो मेरा ध्यान पुरे समय इस बात पर ही लगा रहा की कैसे मैं उससे यह रिंग टोन मांगू।
मिठाई वाला हो या स्वामी हो हम आज भी उन चरित्रों को अपना सा मानते है और कही ना कही अपनी ज़िन्दगी में खोजने की एक असफल सी कोशिश करते है , ये जानते हुए कि हम शायद स्वामी की उस सच्चाई को छू भी ना पाये। सुनने में आया है की शायद दूरदर्शन इस धारावाहिक को फिर से फिल्माना चाहता है। वैसे तो परिवर्तन ही इस दुनिया की एकमात्र स्थिर चीज़ है लेकिन कुछ बातें अपरिवर्तनीय ही अच्छी लगती है और एल दर्शक के नज़रिए से मुझे भी शायद ये परिवर्तन रास न आए क्योंकि कुछ पुराने धारावाहिकों का नया स्वरुप उतना प्रभावशाली नही रहा है। खैर देखते है क्या होता है, तब तक गुनगुनाते रहिये ताना ना ताना ना ना ना...

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Aditya Dubay
हर जगह ये पूछा जाता है कि अपने बारे मे बताइए (About me), हम ये सोचते है की जो हमें जानते है उन्हें अपने बारे मे बताना ग़लत होगा क्योंकि वो हमें जानते है और जो हमें नही जानते उन्हे हम बता कर क्या करेंगे की हम कौन है | जो हमें नही जानता क्या वो वाकई हमें जानना चाहता है और अगर जानना चाहता है तो उसे About me से हम क्या बताये क्योंकि हम समझते है बातचीत और मिलते रहने से आप एक दूसरे को बेहतर समझ सकते हो About Me से नही | वैसे एक बात और है हम अपने बारे मे बता भी नही सकते है क्योंकि हमें खुद नही पता की हम क्या है ? हम आज भी अपने आप की तलाश कर रहे है और आज तक ये नही जान पायें हैं की हम क्या है? अब तक का जीवन तो ये जानने मे ही बीत गया है की हमारे आस पास कौन अपना है और कौन पराया ? ये जीवन एक प्रश्न सा ज़रूर लगता है और इस प्रश्न को सुलझाने मे हम कभी ये नही सोच पाते है की हम कौन है? कुछ बातें सीखने को भी मिली जैसे आपका वजूद आपके स्वभाव या चरित्र से नही बल्कि आपके पास कितने पैसे है उससे निर्धारित होता है | कुछ लोग मिले जो कहते थे की वो रिश्तों को ज़्यादा अहमियत देते है लेकिन अंतत: ... बहुत कुछ है मन मे लिखने के लिए लेकिन कुछ बातें या यू कहें कुछ यादें आ जाती है और मन खट्टा कर जाती है तो कुछ लिख नही पाते हैं |
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