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Friday, June 26, 2009

मेरे शहर में मानसून

तो आखिरकार मेरे शहर में मानसून ने दस्तक दे ही दी ... यह एक बहुत सुकून देने वाला अहसास है । अभी जब में ये बात आप लोगो से कह रहा हूँ तब भी बाहर बरसात हो रही है और मैं बुद्धू बक्से में रामायण का अन्तिम एपिसोड देख रहा हूँ । दिन भर की थकान के बाद अब मुझे उबासी भी आ रही है साथ ही ठंडी ठंडी हवा मेरे आलस को और बड़ा रही है लेकिन मैं अभी सोना नहीं चाहता हूँ । पता नहीं क्यों लेकिन अभी नहीं...
आज शाम को मैं काम से बाज़ार गया था तब मुझे लगा की क्या कारण है की मैं इस शहर को नहीं छोड़ना चाहता हूँ , ठंडी ठंडी हवा चल रही थी , आसमान में ना अँधेरा था न उजाला एक अलग ही रंग में रंगा हुआ था आसमान मानो आज एक नए रंग की रचना करना चाहता हो जैसे और भोपाल में अब भी कुछ हरियाली आधुनिकता की बलि नहीं चढ़ पायी है तो वो भी अपना योगदान देना एक कर्तव्य के रूप में ले रही थी।
कुल मिला कर एक बहुत अच्छे मौसम की बात मैं यहाँ करना चाहता हूँ जिसका आज मैं साक्षी बना हूँ । अब मैं यही उम्मीद कर सकता हूँ एक भोपाली होते हुए कि जल्द से जल्द इस शहर की शान हमारी बड़ी झील फिर से अपने पुराने स्वरुप में लौट आए और किसी दिन तेज़ बरसात में मैं बड़ी झील के किनारे बैठ कर बरसात होते हुए देख सकूँ।

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Aditya Dubay
हर जगह ये पूछा जाता है कि अपने बारे मे बताइए (About me), हम ये सोचते है की जो हमें जानते है उन्हें अपने बारे मे बताना ग़लत होगा क्योंकि वो हमें जानते है और जो हमें नही जानते उन्हे हम बता कर क्या करेंगे की हम कौन है | जो हमें नही जानता क्या वो वाकई हमें जानना चाहता है और अगर जानना चाहता है तो उसे About me से हम क्या बताये क्योंकि हम समझते है बातचीत और मिलते रहने से आप एक दूसरे को बेहतर समझ सकते हो About Me से नही | वैसे एक बात और है हम अपने बारे मे बता भी नही सकते है क्योंकि हमें खुद नही पता की हम क्या है ? हम आज भी अपने आप की तलाश कर रहे है और आज तक ये नही जान पायें हैं की हम क्या है? अब तक का जीवन तो ये जानने मे ही बीत गया है की हमारे आस पास कौन अपना है और कौन पराया ? ये जीवन एक प्रश्न सा ज़रूर लगता है और इस प्रश्न को सुलझाने मे हम कभी ये नही सोच पाते है की हम कौन है? कुछ बातें सीखने को भी मिली जैसे आपका वजूद आपके स्वभाव या चरित्र से नही बल्कि आपके पास कितने पैसे है उससे निर्धारित होता है | कुछ लोग मिले जो कहते थे की वो रिश्तों को ज़्यादा अहमियत देते है लेकिन अंतत: ... बहुत कुछ है मन मे लिखने के लिए लेकिन कुछ बातें या यू कहें कुछ यादें आ जाती है और मन खट्टा कर जाती है तो कुछ लिख नही पाते हैं |
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